उन चोरों को रोकने का काम आपको ही करना होगा।
1973 में
कॉलेज के विद्यार्थियों के
एक समूह ने अनजाने
में 'द गुड समेरिटन
एक्सपेरीमेंट' नामक एक बड़े
शोध में हिस्सा लिया।
इन विद्यार्थियों को दो समूहों
में बाँटा गया। शोथ का
उद्देश्य इस बात की
जाँच करना था कि
वे कौन से घटक
होते हैं, जो मुश्किल
में फँसे किसी अजनबी
की मदद करने या
न करने के लिए
लोगों को प्रेरित करते
हैं। कुछ विद्यार्थियों को
कहा गया कि वे
शिक्षा से जुड़े पेशे
के बारे में छोटा
सा भाषण तैयार करें,
बाकी विद्यार्थियों को बाइबिल की
कहानी 'पेरबल ऑफ द गुड
समेरिटन' का दृष्टांत देते
हुए मुसीबत में फंसे व्यक्ति
की मदद को लेकर
एक वक्तव्य तैयार करने को कहा
गया। हर समूह में
कुछ लोगों को यह कहा
गया कि उन्हें देर
हो गई है और
उन्हें अपने लक्ष्य तक
जल्दी पहुँचना है, जबकि अन्य
लोगों को कहा गया
कि उनके पास पर्याप्त
समय है और वे
समय लेकर अपना काम
कर सकते हैं। विद्यार्थियों
को यह नहीं मालूम
था कि शोधकर्ताओं ने
रास्ते में एक व्यक्ति
को जानबूझकर बैठाया हुआ है, जो
खाँस रहा है और
स्पष्टतः संकट में दिखाई
दे रहा है।
अंत
में आधे से भी
कम विद्यार्थी उस व्यक्ति की
मदद करने के लिए
रुके, मगर रुकने या
न रुकने के लिए निर्णयकारी
घटक दिया गया काम
नहीं, बल्कि समय था। जिन
विद्यार्थियों को समय की
कमी थी और जो
पहले ही भागमभाग में
लगे थे, उनमें से
नब्बे प्रतिशत लोग अजनबी की
मदद करने के लिए
नहीं रुके। कुछ लोग तो जल्दबाजी में उसे लाँघते हुए या उस पर पाँव धरते हुए
निकल गए। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि किसी की मदद कैसे की जाए, वे इस
विषय पर भाषण देने के लिए जा रहे थे।
अब यदि शिक्षा
से सम्बद्ध विद्यार्थी ही यदि इतनी आसानी से अपनी सबसे महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता से
अपना ध्यान भटका सकते हैं, तो क्या बाकी हम सब लोग एक प्रार्थना तक ठीक से करके उसे
समझ पाएँगे? अमल में ला पाएँगे?
स्पष्ट है कि
हमारा बढ़िया उद्देश्य भी आसानी से भुलाया जा सकता है। जैसे छह झूठ आपको धोखा दे सकते
हैं और गुमराह कर सकते हैं, उसी तरह चार चोर भी आपको अपनी जकड़ में लेकर आपकी उत्पादकता
को खत्म कर सकते हैं। और चूँकि उनसे आपको बचाने वाला कोई नहीं होगा, अतः उन चोरों को
रोकने का काम आपको ही करना होगा।